Tuesday 17 June 2014

फ़ैसला….हौसला

न रुकना है 
किसी राह पे
यह फ़ैसला
करके
चले हैं….

बिछड़ेंगे नहीं 
कभी भी 
दिल में ये हौसला 
रख के 
चले हैं.....
--सुनीता

Tuesday 29 April 2014

बिखरे जज़्बात

अक्सर
बिखरे से रहे
जज़्बात मेरे
अँधेरों में
हवाओं की तरह
फ़िज़ाओं में 
घूमते ही रहे

न किसी ने समझा
न समझने की कोशिश की
बस बादल की तरह 
बरसते ही रहे
अक्सर
जज़्बात मेरे
---सुनीता

Sunday 23 March 2014

बोली लगी

मैं,
सोचते-सोचते
दूर तलक
निकल गई ॥

न जाने,
आज मुझे
मेरी तन्हाई
क्यूँ अच्छी
लगने लगी ?

बाज़ार से,
गुज़र के भी
बेख़बर रही ॥
सुना 
औरों से
मेरी भी,
बोली लगी ॥
--सुनीता

Sunday 9 March 2014

मिले

दुनिया की
इस भीड़ में
लोग मिले
बेहिसाब मिले।
पर शायद,
किसी तम्मना
के साथ
बेशुमार मिले !

मेरे दिल
कि यही
बस एक
तमन्ना है।
अगर
कोई मिले
तो,
बेसबब मिले।
—सुनीता

Friday 7 March 2014

हम सँवर जाते

गर तुम यादों की हद से गुज़र जाते
तेरी खातिर फिर से हम सँवर जाते

अब सूरत देख के आईने में क्या करें
तेरी आँखों में बस के, निख़र जाते

तुम इक बार विश्वास करते हमपर
तेरी ख़ातिर सब से दुश्मनी कर जाते

चाह नहीं थी मुझे किसी चाहत की
तुम जो चाह लेते तो हो हम ज़र जाते

यादें बसी हुई है दर-ओ-दीवार में
नहीं तो हम भी गाँव छोड़ शहर जाते
—सुनीता

(ज़र= स्वर्ण, सोना)

Monday 3 March 2014

वह दिन भी कितने ही सुहाने थे

वह दिन भी कितने, ही सुहाने थे
ढ़ूँढ़ा करते जब मिलने के बहाने थे

अब इन रोशनियों में सुकूँ नहीं यहाँ 
खूबसूरत वही घर के दीये पुराने थे

अब कहाँ बचे वो शजर इस बस्ती में
कभी हुआ करते जहाँ आशियानें थे

दिल में हौसला हो तो नामुकिन नहीं
वो शहर बसाना जहाँ बसे वीराने थे

शमा की चाहत में फ़ना होते परवाने
लोग समझते हैं शायद वह दीवाने थे

—सुनीता

Wednesday 12 February 2014

एक एहसास

एक एहसास,
वो तेरा आना...
हल्के से मुस्कुराना...
जैसे छिपे चाँद का,
बदरी से निकल आना...
वो तेरी बातें,
हल्के से गुनगुनाना...
जैसे साज का,
यूँ अचानक छिड़ जाना...
वो तेरा जाना,
हल्के से थपथपाना...
जैसे वक़्त का,
थम जाना....
थम जाना....

--सुनीता

तुम लौट आना

उदास जब भी,
तुम कभी होना !
बीते लम्हों को,
तुम याद कर,
लौट आना.....
नींद जब भी,
दूर तलक हो,
आँखों से !
तुम हसीँ ख़्वाब सा,
वापस आ जाना.....

तेरा नाम जब भी,
मेरे लब पे आए !
तुम मुस्कुराते हुए,
लौट आना.....
सजदा जब भी,
मैं खुदा का करूँ !
तुम दुआओं में,
मेरी आ जाना…..

--सुनीता

अक्सर

माना कितने ही चिराग़ रोज़ सँवर जाते हैं
पर कुछ सहर होने से पहले बिखर जाते हैं

हाँ ! ये ज़िंदगी काँटों का सफर है लेकिन
फ़िर भी कुछ रास्ते फूलों से गुज़र जाते हैं

मिट्टी के घरोंदे यहाँ टूट जाते हैं अक्सर
हो जब भी यहाँ कुदरत के कहर जाते हैं

जब भी तेरे ख्वाब पलकों में उतर आए
फ़िर वक़्त के लम्हे मानो ठहर जाते हैं


--सुनीता

देख लेते हैं

कैसे चल रहा है आज, 
गुज़ारा देख लेते हैं॥ 
चलो बदलते वक़्त क़ा,
नज़ारा देख लेते हैं॥ 
आज धुँधला सा आया है,
चेहरा निगाहों में, 
चलो आईना फिर हम, 
दुबारा देख लेते हैं॥ 
यहाँ कब डूबेगी कश्ती, 
क्या पता किसको? 
चलो फिर भी आज, 
किनारा देख लेते हैं॥ 
होता है मुक़द्दर क़ा, 
बदलना ना मुमकिन, 
फिर भी आज़मा कर, 
सितारा देख लेते हैं॥ 

—सुनीता