''काव्य सरिता''
Wednesday 9 October 2013
ऐ ज़िन्दगी !
ऐ ज़िन्दगी !
एक पल भी,
काटना दुश्वार है.…
न जाने कैसे,
काटेंगे हम !
यह सदियाँ,
जो पड़ी है !
काश,
बदल जाती-
सदियाँ......
बन जाते,
कुछ लम्हें !
चल पड़ते,
हम सफ़र पर,
कोई रिवायत,
छोड़ कर….
--सुनीता
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment