कैसे चल रहा है आज,
गुज़ारा देख लेते हैं॥
चलो बदलते वक़्त क़ा,
नज़ारा देख लेते हैं॥
आज धुँधला सा आया है,
चेहरा निगाहों में,
चलो आईना फिर हम,
दुबारा देख लेते हैं॥
यहाँ कब डूबेगी कश्ती,
क्या पता किसको?
चलो फिर भी आज,
किनारा देख लेते हैं॥
होता है मुक़द्दर क़ा,
बदलना ना मुमकिन,
फिर भी आज़मा कर,
सितारा देख लेते हैं॥
—सुनीता
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