Wednesday 12 February 2014

एक एहसास

एक एहसास,
वो तेरा आना...
हल्के से मुस्कुराना...
जैसे छिपे चाँद का,
बदरी से निकल आना...
वो तेरी बातें,
हल्के से गुनगुनाना...
जैसे साज का,
यूँ अचानक छिड़ जाना...
वो तेरा जाना,
हल्के से थपथपाना...
जैसे वक़्त का,
थम जाना....
थम जाना....

--सुनीता

11 comments:

  1. सुन्दर एहसास के साथ बहुत सुन्दर लेखनी आपकी सुनीता जी।

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  2. आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    --
    आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर…!

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  3. बहुत सुन्दर......

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  4. आप बहूत अच्छा लिखती हैं सुनीता जी ....एक अरसे के बाद इतने कोमल भावों को शब्दों में पिरोये देख रहें हैं ....शुभकामनाएँ

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