मैं, सोचते-सोचते दूर तलक निकल गई ॥ न जाने, आज मुझे मेरी तन्हाई क्यूँ अच्छी लगने लगी ? बाज़ार से, गुज़र के भी बेख़बर रही ॥ सुना औरों से मेरी भी, बोली लगी ॥ --सुनीता
आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति -- आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (24-03-2014) को ''लेख़न की अलग अलग विद्याएँ'' (चर्चा मंच-1561) पर भी होगी! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर…!
आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (24-03-2014) को ''लेख़न की अलग अलग विद्याएँ'' (चर्चा मंच-1561) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
shukriya Abhishek ji
ReplyDeleteआभार कालीपद प्रसाद जी
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