गर तुम यादों की हद से गुज़र जाते
तेरी खातिर फिर से हम सँवर जाते
अब सूरत देख के आईने में क्या करें
तेरी आँखों में बस के, निख़र जाते
तुम इक बार विश्वास करते हमपर
तेरी ख़ातिर सब से दुश्मनी कर जाते
चाह नहीं थी मुझे किसी चाहत की
तुम जो चाह लेते तो हो हम ज़र जाते
यादें बसी हुई है दर-ओ-दीवार में
नहीं तो हम भी गाँव छोड़ शहर जाते
—सुनीता
(ज़र= स्वर्ण, सोना)
बहुत लाज़वाब आपकी रचना।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
अब सूरत देख के आईने में क्या करें
ReplyDeleteतेरी आँखों में बस के, निख़र जाते
लाजवाब।
फूलो की पंखुडियो से भी ज्यादा कोमल होते है जज्बात ......जो न समझे उसे क्यूं मै समझाऊ ये खूबसूरत बात
ReplyDeleteबहूत ही सुंदर शब्द और भाव
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
ReplyDelete--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
सुंदर !
ReplyDeleteaabhar Abhishek ji
ReplyDeleteaabhar Priyanka ji
ReplyDeleteaabhar aaderneey Satish ji
ReplyDeleteaabhar Sushil ji
ReplyDeleteaabhar Patel ji
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