एक एहसास
एक एहसास,
वो तेरा आना...
हल्के से मुस्कुराना...
जैसे छिपे चाँद का,
बदरी से निकल आना...
वो तेरी बातें,
हल्के से गुनगुनाना...
जैसे साज का,
यूँ अचानक छिड़ जाना...
वो तेरा जाना,
हल्के से थपथपाना...
जैसे वक़्त का,
थम जाना....
थम जाना....
--सुनीता
सुन्दर एहसास के साथ बहुत सुन्दर लेखनी आपकी सुनीता जी।
ReplyDeleteआपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDelete--
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
खूबसूरत खूबसूरत
ReplyDeletekhoobsurat ehsaas ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteआप बहूत अच्छा लिखती हैं सुनीता जी ....एक अरसे के बाद इतने कोमल भावों को शब्दों में पिरोये देख रहें हैं ....शुभकामनाएँ
ReplyDeleteshukriya Abhishek ji
ReplyDeleteshukriya Sanjay Bhasker ji
ReplyDeleteshukrika kavita ji
ReplyDeletethnx upasana ji
ReplyDeleteshukriya satish sharma ji
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